Saturday 18 August 2018

"अल्लाह और राम"

कलयुग में भी मैंने भगवान देखा है

Friday 17 August 2018

"कोशिश"

ऐ खुदा एक आख़िरी जान देदे मुझमे,

इस बार उसे सब कुछ बताऊंगा,
हाथ उसका दिल पर रख के,
बेजाँ धड़कन सुनाऊंगा..।
आंखों में डूब के उसके,
इश्क़ में तैरना सिखाऊँगा...।

"एक आवाज़"

एक राज़ हूँ ,
क़लम से राज़ लिखता हूँ।
बिखरा हूँ,टूटा हूँ
पर इश्क़ की आवाज़ लिखता हूँ..।

"क्या तुम हो"

जो कुछ बूंदें छू के बह जाती है आंखों से,
तो लगता है तुम हो,
जो वक़्त पुरानी बदल जाती है यादों में,
तो लगता है तुम हो,
जो कह जाता हूँ लफ्ज़ हज़ारों नजरों से,
तो लगता है तुम हो,
जो बीत जाता हूँ ,सदियाँ बन लम्हों में,
तो लगता है तुम हो.।।

"पापा"

वो मुश्किलों में आगे रह तुम्हे चलना सिखाएगा
वो हर बार हार कर तुम्हे जितना सिखाएगा
वो गिर जाएगा खुद
पर तुम्हे उठना सिखाएगा
वो अपने सपने भूल जाएगा रोज़
जो तुम्हारे सपनो को अपना बनाएगा

एक भगवान सच में हैं जिन्हें हम देख पाते है,
वो नाम पूछो दुनिया से तो "पापा" बतायेगा..।


Thursday 16 August 2018

शहर के तुम...✍️

आँखे जो निहारती थी कभी पूरे महकमे में हमें,
शहरी धुंध में कहीं खो गई है,
शहर से खरीद कर चुटकी भर नींद
हमे ज़िंदा ऱख,खुद सो गई है ।।

पर मैं तुमसे प्यार नहीं करता...✍️

हाँ कर लेता हूं कभी कभी याद तुमको
जो मैं वक़्त तलक अकेला रहता हूँ ,
पर जान लो इतना तुम
की मैं तुमसे प्यार नहीं करता।

मुड़ जाता हूं तेरी गलियों के तरफ,चलते चलते
दूरी लंबी है,बेशक
मैं इनकार नहीं करता
पर सुनो,
मैं तुमसे प्यार नहीं करता ।

    मगरूरी तेरी मुबारक तुमको
मैं तेरी तरह दिलों पर वार नहीं करता
पता जो कुछ भी हो मेरे बारे में तुम्हें,
पर
मैं तुमसे प्यार नही करता।

अच्छा है आशिक़ तेरा नया जो है
पर मैं मोहब्बत हर बार नही करता
जा तुझ पर फिर ऐतबार नही करता

हाँ, मैं तुमसे प्यार नही करता  ।।

आसमाँ...✍️

मैं आसमाँ खाली खाली सा,
तुम सितारे बन के आ जाना,

मैं बारिश बन बरस जाऊंगा,
तुम बादल बन के छा जाना..।

एक फज़र से शाम तक...✍️

वो फज़र तक मेरी परछाई बन साथ रहती थी,
फिर अचानक भूल जाती थी
कोई गुज़रा शाम समझ के,
याद करने का एहशान भले कर देती थी मुझपे वो
पर सिर्फ और सिर्फ एक नाम समझ के...।।

मेहबूब मेरे...✍️

मैं इश्क़ का खिलौना था कोई,
उसे खिलौने पसन्द भी खूब थे,

आंखे जब बंद हुई मेरी,
खिलौने टूट गए मेहबूब के... ।

तेरे अक़्स से मेरे अश्क़ तक...✍️

मैं अक़्स बन अश्कों में बहता चला जाता हूँ
रात बीत जाती कई वक़्त दर वक़्त
पर कही मैं रुका का रुका रह जाता हूँ
मैं अक़्स बन अश्कों में बहता चला जाता हूँ
वो शब्द हूँ
जो वाक्य को तरसा रह जाता हूँ
मैं अक़्स बन अश्कों में बहता चला जाता हूँ
एक बात है
पर सिर्फ बात है,बातों की क्या बिसात है
जो बातों से घिर के भी हमराज़ रह जाता हूँ
मैं अक़्स बन अश्कों में बहता चला जाता हूँ
मिट्टी हूँ,
मिट्टी बनने को,मिट्टी में मिल जाता हूँ
जो अक़्स बन अस्कों में बहता चला जाता हूँ
मैं अक़्स बन अश्कों में बहता चला जाता हूँ।। 2।।

शुरुआत..✍️

अभी तो शुरुआत है,
बाँकी पूरी रात है..।🙏

"अल्लाह और राम"

कलयुग में भी मैंने भगवान देखा है